दुर्गासप्तशती सार (Durgasaptashati Saar)
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वर्ष में दो बार धूमधाम से नवरात्रि मनाई जाती है, नौ दिन देवी पूजा होती है, पर क्या हम सचमुच इस पर्व और देवी के मर्म को समझते हैं?
श्रीदुर्गासप्तशती, जो नवरात्रि का केंद्रीय ग्रंथ है, उसमें जीवन के रहस्य को समझने के लिए अनेकों प्रतीकों का प्रयोग किया गया है — प्रकृति, पशु-पक्षी, असुर, देवता, और देवी स्वयं। ये प्रतीक हमारे जीवन में किस प्रकार सार्थक हैं? इनका आज के संदर्भ में क्या अर्थ है?
इस पुस्तक के माध्यम से आचार्य प्रशांत बड़े ही अनूठेपन व सरलता से इन प्रतीकों का अर्थ बताते हैं और इनका आज के जीवन में उपयोग समझाते हैं।
यह पुस्तक दुर्गा सप्तशती ग्रंथ को सार रूप में आप तक लाने का एक प्रयास है।
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वर्ष में दो बार धूमधाम से नवरात्रि मनाई जाती है, नौ दिन देवी पूजा होती है, पर क्या हम सचमुच इस पर्व और देवी के मर्म को समझते हैं?
श्रीदुर्गासप्तशती, जो नवरात्रि का केंद्रीय ग्रंथ है, उसमें जीवन के रहस्य को समझने के लिए अनेकों प्रतीकों का प्रयोग किया गया है — प्रकृति, पशु-पक्षी, असुर, देवता, और देवी स्वयं। ये प्रतीक हमारे जीवन में किस प्रकार सार्थक हैं? इनका आज के संदर्भ में क्या अर्थ है?
इस पुस्तक के माध्यम से आचार्य प्रशांत बड़े ही अनूठेपन व सरलता से इन प्रतीकों का अर्थ बताते हैं और इनका आज के जीवन में उपयोग समझाते हैं।
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