पानी में मीन प्यासी (Pani Me Meen Pyasi)
Almost gone!
Couldn't load pickup availability
“पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवे हाँसी।”
कबीर साहब के भजन की इस सुंदर, करुणा-भरी और सरल पंक्ति में गहराई भी है और एक स्नेहिल हास्य भी — जो सीधे हृदय को छूता है। असल में ये हँसी केवल मछली पर नहीं, हम सबकी उलझी हुई स्थिति पर है।
जल में जन्मी, जल में पली मीन — यदि वह भी जल को तरसे, तो यह केवल आश्चर्य की बात नहीं, चिंतन की भी बात है। यह पंक्ति असल में हमारी ही तलाश, हमारी ही प्यास, और हमारे ही भ्रमों का आईना है।
जो चाहिए, वह बाहर नहीं मिलेगा, फिर भी हम दौड़ते रहते हैं — कभी संबंधों में, कभी वस्तुओं में, कभी उपलब्धियों में — और हर बार खाली लौटते हैं।
क्या कारण है इस बेचैनी भरी दौड़ का? क्या कारण है इस प्यास का? और कैसे मिटेगी ये प्यास?
कबीर साहब के इस अनुपम भजन में मानव-मन की बेचैनी के प्रति व्यंग्य के साथ-साथ उसके इन प्रश्नों के करुणा से भरे समाधान भी हैं। जिन्हें इस पुस्तक में आचार्य प्रशांत ने बहुत सटीकता से खोला है। आचार्य जी ने हर पंक्ति को वेदांत के आलोक में अत्यंत सरल, सजीव भाषा में स्पष्ट किया है।
Share:
“पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवे हाँसी।”
कबीर साहब के भजन की इस सुंदर, करुणा-भरी और सरल पंक्ति में गहराई भी है और एक स्नेहिल हास्य भी — जो सीधे हृदय को छूता है। असल में ये हँसी केवल मछली पर नहीं, हम सबकी उलझी हुई स्थिति पर है।
जल में जन्मी, जल में पली मीन — यदि वह भी जल को तरसे, तो यह केवल आश्चर्य की बात नहीं, चिंतन की भी बात है। यह पंक्ति असल में हमारी ही तलाश, हमारी ही प्यास, और हमारे ही भ्रमों का आईना है।
जो चाहिए, वह बाहर नहीं मिलेगा, फिर भी हम दौड़ते रहते हैं — कभी संबंधों में, कभी वस्तुओं में, कभी उपलब्धियों में — और हर बार खाली लौटते हैं।
क्या कारण है इस बेचैनी भरी दौड़ का? क्या कारण है इस प्यास का? और कैसे मिटेगी ये प्यास?
कबीर साहब के इस अनुपम भजन में मानव-मन की बेचैनी के प्रति व्यंग्य के साथ-साथ उसके इन प्रश्नों के करुणा से भरे समाधान भी हैं। जिन्हें इस पुस्तक में आचार्य प्रशांत ने बहुत सटीकता से खोला है। आचार्य जी ने हर पंक्ति को वेदांत के आलोक में अत्यंत सरल, सजीव भाषा में स्पष्ट किया है।





You Also Viewed

पानी में मीन प्यासी (Pani Me Meen Pyasi)